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Saturday, April 22, 2023

कोरोना से डरो मत लड़ो

*कोरोना से डरो मत लडो*
आप सभी को मेरा नमस्कार।  यह लेख लिखते हुए न तो मेरे हाथ कांप रहे है और न ही दिल घबरा रहा है क्यूकि मरने से पहले मरना बुजदिली है । आज के समय मे हम सभी की यही स्थिति है।  हम लोग लड़ने से पहले ही हार मान चुके है।  मेरे इस लेख के साथ मै आप सभी को 2018 मे थाइलैंड की परिस्थिति पर लिखे गये लेख को भी भेजूंगा जिससे आप सबकी हौसला अफजाई मे मै थोडा सा प्रयास कर सकू और आपके आत्मबल मे भी वृद्धि हो सके । इस दुनिया मे जब वयकति जन्म लेता है तो जनम के साथ ही विधाता पूरी उम्र  के लिए  उस वयकति का स्वभाव, चरित्र ,गुण अवगुण सबकुछ लिख देता है। विधाता के लिखे हुए लेख को हमारे कर्मो और हमारे गुरू के आशीर्वाद के अलावा विधाता भी बदलने मे सक्षम नही है । इसलिए जिसकी जैसी नियति है वो उसी के अनुरूप व्यवहार करेगा और समाज मे भी उसी अनुसार उसको जाना जाएगा । जैसे अगर कोई वयकति सज्जन है तो वह जहा जाएगा  जिससे भी मिलेगा वो उसको सदाचार के गुण ही सिखाएगा और जिस जगह ऐसा वयकति रहेगा वहा का माहौल भी खुशनुमा ही रहेगा । लेकिन अगर कोई वयकति निर्जन या पापी है तो वह वयकति दुनिया के किसी भी कोने मे चला जाए वह अपने इस गुण के अनुरूप सभी जगह पाप और दुष्कर्म  ही करेगा चाहे वो देश मे हो या विदेश मे,इस लोक मे हो या परलोक मे । यहा मेरा तात्पर्य  समाज के विभिन्न वर्गो  के लोगो से है जो समाज मे अलग अलग तरीके से अपना रोल अदा कर रहे है । कुछ लोग ऐसे है जो येन केन प्रकारेण हमेशा सिर्फ  और सिर्फ  नकारात्मकता का ही प्रचार प्रसार करते है चाहे स्थिति कैसी भी हो । एक सीधी सी बात है अगर विधाता ने यह लिख दिया है कि इस दिन इतने समय के लिए  तूफान आएगा तो हमको उस तूफान से अपना बचाव करना है न कि उससे लड़ने जाना है । अपना समय पूर्ण  होने पर तूफान अपने आप चला जाएगा । उस स्थिति मे तूफान को जो तबाही करनी है वो करेगा ही लेकिन जो मजबूत है वो उससे जीत भी लेंगे। कोरोना की इस स्थिति मे कुछ लोग कालाबाजारी करने से भी नही चूकेगे  क्यूकि ऐसे लोग उन गिदधो की तरह होते है जो शमशान की लाश को जलने के बाद भी नौचकर खाने मे परहेज नही करते । कैसी भी स्थिति हो उन्हे सिर्फ  पैसा दिखता है जैसे कुछ लोग खाध पदार्थ  और अन्य जरूरी सामानों की कालाबाजारी करते है और अभी कोरोना के इंजेक्शन की करते है और कुछ डाकटर जो ऐसे भयानक समय मे भी लोगो के शरीर से अंग निकालने मे पीछे नही हो रहे । ऐसे लोगो की किसी की आर्थिक,मानसिक या शारीरिक स्थिति की भी कोई परवाह नही है।  सत्ता पक्ष और विपक्ष मे बैठे लोग जो एक लाख गिदधो के बराबर होते है एक दूसरे के कपडे उतारने मे भी नही चूकते । इसके उलट समाज मे ऐसे भी लोग है जो इस मुसीबत की परिस्थिति मे भी अपनी जान पर खेलकर अपने कर्तव्यो का निर्वहन कर रहे है । कुछ लोग समाज मे सोशल मीडिया और अन्य संसाधनो के जरिए समाज मे नकारात्मकता का विष घोल रहे है क्यूकि उन्हे इसी मे आनंद आता है। ताजा सरकारी आंकडो के अनुसार अभी तक करोडो लोग कोरोना की वैक्सीन  ले चुके है और वैक्सीन लेने के बाद सिर्फ  0.05% लोग ही इस संक्रमण का शिकार हुए है । मतलब हमको इन आंकडो पर गर्व  होना चाहिए  । जो लोग इस दुनिया को अलविदा कह चुके है हम उन्हे वापस नही था सकते क्यूकि विधाता ने जिंदगी और मौत बांटने का विभाग अभी भी अपने पास ही रखा हुआ है।  मेरे इस लेख का उद्देश्य सिर्फ  यही है कि जो चला गया है हम उसको वापस नही था सकते लेकिन जो है उसे हमे बचाना है । कृपया अफवाह और नकारात्मक खबरों से अपने और अपने परिवार को दूर रखे । क्यूकि समाज और सरकार और अन्य संस्थाओं के लिए  आप सिर्फ  एक संखया हो लेकिन अपने परिवार के लिए  आप पूरी दुनिया हो इसलिए किसी भी गलत कदम से अपने परिवार की दुनिया मत उजाडिए । अपना और अपने परिवार का खयाल रखिए । आप सुरक्षित है तो समाज भी सुरक्षित और देश भी सुरक्षित । 
बाकी अप सब समझदार है। 
जय जय सियाराम ।
हेमन्त कुमार शर्मा ।

Monday, April 3, 2023

समाज

समाज । यह एक शब्द है जो  आज के घुटनों तक कच्छा पहनकर घूमने वाले युवक युवतियों को बड़ा ही बकवास और दकियानूसी लगता है । क्युकी यह समाज ही है जो अभी तक अपने कंधे पर अपने अतीत और अपनी सामाजिक परम्पराओं की गठरी लेकर चलता आया है और समाज यह गठरी जिम्मेदारी के उन कंधों पर डालता है जो इसे संभालकर रख सके और आगे किसी जिम्मेदार व्यक्ति को हस्तांतरित कर सके । लेकिन यह हमारे और आपके लिए कितने अफसोस और शर्म की बात है कि हमारे इतनी बड़ी बड़ी डिग्री धारण करने के बाबजूद समाज के जिम्मेदार व्यक्तियों को वो कंधे नही मिल पा रहे है । वैसे समाज करता क्या है ? समाज का काम क्या है ? समाज ने आज तक किया ही क्या है ? ये सब बातें आज के पढ़े लिखे कूल ड्यूड के दिमाग में आती ही है क्युकी आजका कुल ड्यूड हर चीज को अपने किताबी ज्ञान के तर्क,वितर्क और कुतर्कों से ही परखता है । यहां तर्क,वितर्क और कुतर्को का नाम इसलिए दिया जा रहा है  क्युकी आजका युवा अगर किसी जानकर व्यक्ति से किसी गंभीर विषय पर बहस करता है तो पहले इस मामले पर वो तर्क करेगा । जब तर्क में उसके पास सामने वालों के तीरों का कोई तोड़ नही होता है तो वह उससे वितर्क करता है ,मतलब मामले से ही अलग बयानबाजी और जब इस कुल ड्यूड को यह लगता है की वो सामने वाले से जीत नही पाएगा तो वो वितर्क का सहारा लेता है । मतलब मुद्दे से बिलकुल हटकर बातें करता है । पहले के जमाने में घर की औरतें सुबह सुबह घर का काम करते करते गीत गाया करती थी जो की मौसम के अनुरूप और त्यौहारों के अनुकूल होते थे । जैसे सावन के गीत, बारिश के गीत और अन्य गीत और बाकी की परंपराएं जो कि आज के समय में लुप्त होने के कगार पर है और आज का कुल ड्यूड इन्ही सब चीजों को फ्री समय में गूगल और यूट्यूब पर ढूंढता रहता है । लेकिन इंटरनेट से ही अगर हमें सभी चीजे मिल जाती , उन बातों की गहराई पता चल जाती तो फिर बात ही क्या थी ?? खैर समाज का एक पक्ष यह भी है जो आजके समय में बहुत कम लोगों को ही  पता है । यहां अभी मैं जो बताने जा रहां हूं यह सुनने मे थोड़ा अजीब और अटपटा जरूर लग सकता है लेकिन यह हमारे जीवन का एक कड़वा सच भी । जैसे अगर किसी के परिवार में कोई खुशी का अवसर आता है तो वो समाज ही है जहां सब लोग मिलकर इस अवसर की सारी तैयारियों को अपना कर्तव्य समझकर निभाते है । वहां काफी लोग अपनी जेब से खर्च करने में भी झिझक महसूस नहीं करते है । उसी प्रकार यह समाज ही  होता है जो कि किसी दुख में पड़े हुए व्यक्ति के साथ भी खड़ा हो जाता है । जैसे कि अगर किसी व्यक्ति के घर में कोई मृत्यु होती है तो पूरा परिवार शोकाकुल स्थिति में होता है । उस समय उस परिवार को कोई सुध नहीं रहती है ।यह समाज ही होता है जो कि उस व्यक्ति के अंतिम संस्कार की सारी प्रक्रिया में भागेदारी निभाता है और व्यक्ति की अंतिम यात्रा में भाग लेकर उस व्यक्ति को उसके गंतव्य स्थान तक छोड़कर आते है । यहां अभी हाल ही का एक प्रसंग बताता हूं । यह घटना राजस्थान और हरियाणा के गांव की है । एक औरत की बेटी की शादी होने वाली थी तो वो अपने गांव आती है । उस गांव में रहने वाले उसके भाई और उसके पिता की बहुत पहले मौत हो चुकी थी ,तो वह औरत इस गांव के एक पीपल के पेड़ के नीचे नारियल रखकर अपने गांव चली जाती है । ऐसा करते हुए उस औरत को गांव का एक बुजुर्ग देख लेता है और फिर शाम में गांव की  चौपाल पर सभी लोग इकट्ठे होते है और इस पूरे वाकये को बताया जाता है । गांव वाले बाद में बिना किसी दवाब के अपनी मर्जी से अपने गांव की बेटी की बेटी की शादी के भात के लिए लाखों रुपए और शादी का सामान इकट्ठा कर देते है । यहां कहने का तात्पर्य यह है कि हम चाहे कितने भी बड़े ओहदे और पद पर पहुंच जाएं पर जिंदगी समाज में रहकर और सामाजिक बनकर ही हंसी खुशी जी सकते है । वरना आपके सोशल मीडिया पर करोड़ों फॉलोवर ही क्यों न हो, आपको आपका समाज और सामाजिक लोग ही मदद करने आएंगे वरना आजके दिखावटी और बनावटी समय में लोग सिर्फ ऊपरी चमक के ऊपर भागते है ।
बाकी आप सब समझदार है ।
धन्यवाद 
हेमन्त कुमार शर्मा

Tuesday, November 16, 2021

मीडिया ऐसी खबरे कयू नही दिखाता

पता नहीं क्यों ऐसी खबरें मीडिया में नहीं आती 

इंडिगो के एक विमान में आसमान में 12 A सीट पर बैठे एक यात्री को बहुत तेजी से तबीयत खराब हो गई उसे दिल का दौरा भी पड़ा और उसे कुछ अन्य समस्याएं भी एक साथ हो गई

 उस वक्त विमान में सिर्फ एक डॉक्टर यात्रा कर रहे थे और वह डॉक्टर थे केंद्रीय मंत्री डॉक्टर भागवत कराड

 केंद्रीय मंत्री ने अपने मंत्री होने का घमंड छोड़ कर एक डॉक्टर की तरह लगभग आधे घंटे तक उस मरीज के लिए मेहनत किया विमान में कुछ इमरजेंसी दवाएं और इंजेक्शन थी  उन्हें दिया गया मरीज की स्थिति काफी का हद तक काबू में आ गई 

 प्लेन उतरने पर मरीज को हॉस्पिटल में भर्ती किया गया और सिर्फ 1 दिन बाद मरीज हॉस्पिटल से स्वस्थ होकर डिस्चार्ज हो गया 

आज वह मरीज और उसका पूरा परिवार केंद्रीय मंत्री डॉ भागवत कराड  का शुक्रिया अदा कर रहा है यदि डॉक्टर साहब प्लेन में नहीं होते तब उस मरीज की जान नहीं बच सकती थी

Friday, September 10, 2021

सफलता कोशिश करने पर ही मिलती है ।

कल ख़बर आयी कि फोर्ड मोटर्स ने #भारत की दोनों मैन्युफैक्चरिंग यूनिट् #साणंद और #चेन्नई  में ताला लगाने का फैसला किया है। 2 अरब डॉलर के घाटे ने फोर्ड की कमर तोड़ दी जिसके बाद उसे ये फैसला लेना पड़ा। 

किसे पता था इस घमंडी अमेरिकी कंपनी की हालत इतनी जल्दी इतनी नाजुक हो जाएगी। कभी इस इस घमंडी कंपनी के घमंडी चेयरमैन ने बिल फोर्ड ने रतन टाटा को अपने हेडक्वार्टर में बेइज्जत करने की कोशिश की थी। 

साल 1991 में रतन टाटा ग्रुप के चेयरमैन बने। तब टाटा मोटर्स की पहचान ट्रक बनाने की सबसे बड़ी कंपनी के तौर पर होती थी। 1998 में #टाटा_मोटर्स ने कार बनाने का फैसला किया। साल के आखिर में टाटा इंडिका लॉंच हो गई। ये पहली मॉडर्न कार थी जिसे किसी भारतीय कंपनी ने डिजाइन किया। वो दिन-रात काम करने लगे। जब कार मार्केट में लॉंच हुई तो उम्मीदें बहुत थीं। पर रतन टाटा का सपना टूटने लगा।

दिल्ली - मुंबई की सड़कों पर बारिश के बीच अगर कोई कार सबसे ज्यादा ब्रेकडाउन हुई तो वो #इंडिका थी। 1999 में टाटा ग्रुप ने कार कारोबार समेटने की तैयारी कर ली थी। रतन टाटा निराश थे। सॉल्ट टू स्टील कंपनी का तमगा लेकर घूम रहे रतन टाटा के लिए ये एक बड़ा झटका था।

इंडिका को खरीदने के लिए #फोर्ड_मोटर्स ने बोली लगाई। उन्होंने टाटा को संदेशा भिजवाया। #अमेरिका के डेट्रायट में फोर्ड का मुख्यालय है। रतन टाटा और उनकी टीम भारी मन से डेट्रायट पहुंची। लगभग तीन घंटे चली बातचीत में रतन टाटा को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी।

   फोर्ड मोटर्स के चेयरमैन #बिल_फोर्ड ने भारत की सबसे बड़ी औद्योगिक हस्ती को औकात दिखाने की कोशिश की। बिल फोर्ड ने रतन टाटा से कहा कि जब पैसेंजर कार बनाने का कोई अनुभव नहीं था तो ये बचकाना हरकत क्यों की। हम आपका कार बिजनस खरीद कर आप पर उपकार ही करेंगे। इससे रतन टाटा बुरी तरह हिल गए। उसी रात उन्होंने कार बिजनस बेचने का फैसला टाल दिया। अगली ही फ्लाइट से वो अपनी टीम के साथ #मुंबई लौटे।

रतन टाटा ने अब ठान ली थी। इरादे बुलंद थे। लक्ष्य एक था फोर्ड को सबक सिखाना है लेकिन चैलेंज बहुत बड़ा था। एक ऐसी ग्लोबल कंपनी जिसका पूरी दुनिया में रुतबा था। कार सेगमेंट की किंग कंपनी फोर्ड मोटर्स।

2008 में टाटा मोटर्स के पास बेस्ट सेलिंग कार्स की एक लंबी लाइन थी। कंपनी पूरी दुनिया पर छाने को बेताब थी। उधर फोर्ड मोटर्स की हालत खराब होती जा रही थी। कार बेचकर मुनाफा कमाना मुश्किल हो रहा था। 2008 में रतन टाटा ने पासा पलटा और बिल फोर्ड को औकात दिखा दी।

टाटा मोटर्स ने फोर्ड की #लैंड_रोवर और #जगुआर ब्रांड को खरीदने का ऑफर दे दिया। उस समय ये दोनों कारों की बिक्री बेहद खराब थी। फोर्ड को काफी घाटा हो रहा था। फोर्ड की टीम मुंबई आई। बिल फोर्ड को कहना पड़ा - आप हमें बड़ा फेवर कर रहे हैं। अगर चाहते तो रतन टाटा इन दोनों ब्रांड्स को बंद कर सकते थे लेकिन रतन टाटा ने ऐसा नहीं किया। जब लंदन की फैक्ट्री बंद होने की अफवाह उड़ी तो रतन टाटा ने कामगारों की भावना समझी। यूनिट को पहले की तरह काम करने की आजादी दी।

आज लैंड रोवर और जगुआर दुनिया की बेस्ट सेलिंग कार ब्रांड्स में शुमार है। टाटा मोटर्स दुनिया की बड़ी कार कंपनी है और रतन टाटा सबसे सम्मानित उद्योगपतियों में से एक हैं। एक ऐसा शख्स जिसे बिल फोर्ड की तरह गुरूर नहीं है। #टाटा ग्रुप अपने मुनाफे का 66 परसेंट चैरिटी पर खर्च करती है।

#रतन_टाटा से यही सबक मिलता है - #Success_is_the_best_way_of_Revenge

Sushil Manav

Tuesday, April 27, 2021

संघ सिखाता है त्याग और बलिदान

कोविड काल में संघ स्वयंसेवक की आदर्श गाथा-*
नागपूर के 85 वर्षीय संघ  के स्वयंसेवक *श्री नारायण दाभाडकर* जी को इस महामारी मे कोविड हुआ। उनकी पुत्री उन्हे नागपुर के इंदिरा गांधी हॉस्पिटल मे ऍडमिट करने ले गयी। वहां उनका ऑक्सिजन लेवल खतरनाक स्तर पर आ गया।ऍडमिशन फॉर्म भरते समय दाभाडकर जी की दृष्टी सामने रो रहे छोटे बच्चे वाली एक महिला पर पडी जो ऍडमिशन काउंटर पर गिडगिडाते हुए अपने तरुण पती के ऍडमिशन की याचना कर रही थी। 
दाभाडकर जी ने एक संघ स्वयंसेवक की भूमिका निभाते हुए कहा की मेरी आयु 85 वर्ष की हो गयी है, मेरे जीवन का उद्देश तो पूर्ण हो गया है अतः मेरे स्थान पर उस व्यक्ती को जिसे अभी कई जिम्मेदारिया निभाना है, असे ऍडमिशन दिया जाये। डॉक्टर और अन्य कई व्यक्तियो ने उन्हे समझाने की कोशिश की पर वे अडिग रहे और वे उस कोविड पीडित को ऍडमिशन दिलाकर वापिस घर गये।दो दिन बाद श्री नारायण दाभाडकर जी का देवलोक गमन हो गया।
जीवन के सबसे बडे निर्णय मे संघ संस्कार, विचार को ध्यान मे रखकर उसे अमल मे लाने वाले ऐसे पुण्यात्मा को अश्रूपुरीत श्रद्धांजली

Wednesday, March 17, 2021

शाकाहार का महत्व

*कंद-मूल खाने वालों से*
मांसाहारी डरते थे।।
*पोरस जैसे शूर-वीर को*
नमन 'सिकंदर' करते थे॥
*चौदह वर्षों तक खूंखारी*
वन में जिसका धाम था।।
*मन-मन्दिर में बसने वाला*
शाकाहारी *राम* था।।
*चाहते तो खा सकते थे वो*
मांस पशु के ढेरो में।।
लेकिन उनको प्यार मिला
' *शबरी' के जूठे बेरो में*॥
*चक्र सुदर्शन धारी थे*
*गोवर्धन पर भारी थे*॥
*मुरली से वश करने वाले*
*गिरधर' शाकाहारी थे*॥
*पर-सेवा, पर-प्रेम का परचम*
चोटी पर फहराया था।।
*निर्धन की कुटिया में जाकर*
जिसने मान बढाया था॥
*सपने जिसने देखे थे*
मानवता के विस्तार के।।
*नानक जैसे महा-संत थे*
वाचक शाकाहार के॥
*उठो जरा तुम पढ़ कर देखो*
गौरवमय इतिहास को।।
*आदम से आदी तक फैले*
इस नीले आकाश को॥
*दया की आँखे खोल देख लो*
पशु के करुण क्रंदन को।।
*इंसानों का जिस्म बना है*
शाकाहारी भोजन को॥
*अंग लाश के खा जाए*
क्या फ़िर भी वो इंसान है?
*पेट तुम्हारा मुर्दाघर है*
या कोई कब्रिस्तान है?
*आँखे कितना रोती हैं जब*
उंगली अपनी जलती है
*सोचो उस तड़पन की हद*
जब जिस्म पे आरी चलती है॥
*बेबसता तुम पशु की देखो*
बचने के आसार नही।।
*जीते जी तन काटा जाए*,
उस पीडा का पार नही॥
*खाने से पहले बिरयानी*,
चीख जीव की सुन लेते।।
*करुणा के वश होकर तुम भी*
गिरी गिरनार को चुन लेते॥
*शाकाहारी बनो*...!
ज्ञात हो इस कविता का जब TV पर प्रसारण हुआ था तब हज़ारो लोगो ने मांसाहार त्याग कर *शाकाहार* का आजीवन व्रत लिया था । 

Thursday, March 11, 2021

कांदिवली स्टेशन का नाश्ता

कांदीवली स्टेशन (मुंबई) के बाहर, सुबह का नाश्ता बेचते ये दम्पति आपको दिख जाएँगे।अंकुश और अश्विनी ये खुद के लिए नहीं करते और इनको पैसे की कोई कमी भी नहीं है। आप विश्वास नहीं करेंगे, सुबह 4 बजे से 9:30 तक नाश्ता बेचने वाले ये दम्पति MBA पढ़े हैं और इनके पास अच्छी नौकरी भी है।हर दिन सुबह यह लोग अपनी 55 वर्षीय मेड/कुक/बाई द्वारा बने सामानों को बेचते हैं और सारी कमाई उन्हें सौंपते हैं ताकि वो अपने बीमार पति का इलाज करा सके और मेड के बच्चों की पढ़ाई, बिना किसी से मदद माँगे ढंग से हो सके। कांदीवली स्टेशन के बाहर , सरोवर resturant के पास इनके ठेले पर इडली, पाव, बन मशका, पोहा इत्यादि सुबह का नाश्ता सस्ते दामों पर मिलता है। और, इस दुकान पर सुकून और सेवा की मुस्कान भी मुफ़्त मिलेगी। ऐसे हीं लोग एहसास दिलाते हैं कि इंसानियत आज भी superhit है। सलाम इनको। 🙏